श्री मैट चित्तरंजन और नम्रता अस्थाना

उन दोनों ने 2013 में साथ मिलकर 1 किलो की छोटी मशीन के साथ कॉफी भूनना शुरू कर दिया था। यह मशीन छोटी होने के कारण रात में 12 से 14 घंटे तक कॉफी को भूनती थी। हालांकि अब उन्होंने रोस्टर (अब दो 12 किलोग्राम की प्रोबेट मशीनों पर रोस्टिंग) और अपनी टीम दोनों को ही बड़े आकार में बदल दिया था। फिर भी वह अपनी रोस्टिंग की गुणवत्ता को लगातार आगे बढ़ाने पर उतना ही खर्च करते हैं। जितना ऊर्जा और संसाधन पर खर्च करते हैं| वे अपने बिजनेस को आगे बढ़ाने के लिए लगातार जाँच, टेस्टिंग और इंप्लीमेंटेशन पर काम कर रहे हैं। हर फसल में सैकड़ों हरी बीन के सैंपल लेना एक अहम प्रक्रिया है। ब्लू टोकाई कंपनी में कॉफी रोस्टर्स में आखिरी चयन करने से पहले यह प्रक्रिया बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने अपनी टीम को लगातार विकसित करने के लिए और अत्यधिक कुशल बनाने के लिए कई तरीके अपनाए हैं। उन तरीकों में जूनियर रोस्टरों के लिए उन्नत सेंसर ट्रेनिंग आयोजित करना और फार्म स्तर पर प्रोसेसिंग करना प्रमुख है। ब्लू टोकाई कॉफ़ी के वैश्विक कल्चर को भारत में लाना चाहता है। जिसके लिए वह ताजी रॉस्ट की गई कॉफी बींस को सिंगल एस्टेट फॉर्म से सोर्स करने के साथ-साथ ऑर्गेनिक किस्मों का उपयोग करके भी बना रहे हैं। भारतीयों को एरोप्रेस, कैमेक्स और फ्रेंच प्रेस ब्रूइंग तकनीकों पर शिक्षित करके वह कॉफी के फील्ड में आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं। उस क्षेत्र के लिए वह एक नई भाषा जो चाय और इंस्टेंट कॉफी पर निर्भर रहती है बनाना चाहते हैं।

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